पुरानी संसद भविष्य की विदाई के लिए तैयार
दिल्ली, 18 सितंबर 2023: आज दिल्ली के हृदय में स्थित ऐतिहासिक पुरानी संसद का आखिरी दिन है, जो भारतीय राजनीति के सशक्त पीढ़ियों को याद दिलाने का दायित्व था। यह संसद वह साक्षात्कार का साक्षर था, जो भारतीय इतिहास को अनगिनत किस्सों और दृष्टिकोणों से देखता है।
पुरानी संसद की इमारत ने अपने 144 खंभों पर खड़ी आसमान को छू लिया था, जिसने हिंदुस्तान की इबारत लिख दी। इसे 96 वर्ष पहले अंग्रेजों ने बनवाया था, लेकिन इस इमारत ने बनने के बाद भारत का हुकूमत करने का दायित्व ग्रहण किया।
इसी संसद में भगत सिंह ने अपने वीर धमाकों के माध्यम से अपनी आवाज़ को सुनाया, जब वह अपने देश के लिए अपने जीवन की बलिदान दिया। यहां नेहरू ने अपने ‘नियति से साक्षात्कार’ का संदेश दिया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक नई आशा दिलाया।
संविधान की तैयारी इसी संसद में हुई थी, जिसमें देश के निर्माण के लिए हर आयत के लिए दिनों-दिन बहसें हुईं।
इसी संसद के प्रथम मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने लोगों को एक वक्त का भोजन छोड़ने की प्रेरणा दी, जब देश के लोग आपसी सहमति और साझा जीवन की महत्वपूर्ण बात को समझे।
पुरानी संसद ने देश के बड़े नेताओं को बनाया और उन्होंने इसे अपने कर्मभूमि के रूप में स्वीकार किया। इसमें इंदिरा गांधी ने पाकिस्तानी सेना के घुटने टेकने की खबर सुनाई, और अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने अद्वितीय शैली में राजनीतिक शक्ति का प्रयास किया।
आज, पुरानी संसद के बीच बनी इक इमारत को विदाई दिया जा रहा है, लेकिन इसका यादगार युग तक जीवित रहेगा। यहां के दिन-रात के काम-काज का अंत है, पर इसकी यादें हमेशा रहेंगी।