हिमाचल प्रदेश के छह जिलों में पांच वर्ष से कम आयु के 30 प्रतिशत बच्चे हुए कुपोषण का शिकार
हिमाचल। आज के दौर में बच्चों में सबसे ज्यादा कुपोषण के लक्षण देखे जा रहे है, जिसका मुख्य कारण अभिभावकों का बच्चों की ओर कम ध्यान देना है। बच्चे अपनी मर्जी से बाहर का फास्ट फूड खाकर आ जाते है, जिसके चलते वह घर में खाना नहीं खाते, और धीरे- धीरे बच्चों के शरीर को बीमारियां जकड़ लेती है। अब बीमारियों से लड़ने के लिए ताकत उनके शरीर में रहती नहीं है, जिससे बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते है। प्रदेश में यह समस्या सबसे ज्यादा बनी हुई है।
बीते वर्ष की तुलना में अधिक बढ़ी कुपोषण दर
प्रदेश के छह जिलों में पांच वर्ष से कम आयु के 30 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषित है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण पांच के मुताबिक सिरमौर जिले और शिमला को छोड़ बाकी 10 जिलों में कुपोषण दर बीते वर्ष की तुलना में अधिक बढ़ी है। प्रदेश सरकार द्वारा कुपोषण को दूर करने के लिए लाखों रुपये का खर्चा किया जा रहा है, लेकिन तभी भी इसका कुछ असर होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा।
सुविधा संपन्न घरों के बच्चे भी कुपोषण का शिकार
कुपोषित बच्चों की श्रेणी में न केवल निम्न वर्ग के बच्चे शामिल है, बल्कि सुविधा संपन्न घरों के बच्चे भी कुपोषण का शिकार हो रहे है। शिशु रोग विशेषज्ञों द्वारा बताया गया कि बच्चों के कुपोषित होने के पीछे कहीं न कहीं उनके अभिभावकों का ही हाथ है, क्योंकि बहुत से अभिभावक ऐसे भी है, जिनको अपने बच्चों की डाइट का ही पता नहीं है। राज्य़ में 80 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे फास्ट फूड के आदि हो चुके है, जिस कारण वह मोटापे व कुपोषण का शिकार हो रहे है।